संतों की हितभरी अनुभव-वाणी
महामारी अस्वीकार है तो इन्हें अमल में लाइये
- स्वामी रामतीर्थ
यदि गृह-कलह, दुर्भिक्ष (अकाल), महामारी आदि अस्वीकार है तो पवित्रता, ब्रह्मचर्य, हृदय-शुद्धि, निर्मल आचार-विचार को अमल में लाइये ।
भजन नौका बिना...
- संत दयाबाई
बहे जात हैं जीव सब काल नदी के माहिं ।
‘दया’ भजन नौका बिना उपजि उपजि मरि जाहिं ।।
सब जीव कालरूपी नदी में बहे जा रहे हैं । संत दयाबाई कहती हैं कि भगवद्-भजनरूपी नाव के बिना जीव बार-बार जन्मते-मरते रहते हैं ।
साधना में अद्भुत संयोग
- संत थानेदारजी (ठाकुर रामसिंहजी)
यदि श्रद्धालु शिष्य हो या समर्थ गुरु मिल जायें तब भी वह परमात्मा प्रकट हो जाता है । अगर दोनों ही मिल जायें - श्रद्धालु शिष्य को समर्थ गुरु मिल जायें फिर तो क्या कहना ! साधना के क्षेत्र में अद्भुत संयोग है ! शिष्य की जितनी ऊँची भाव-श्रद्धा गुरु के प्रति होगी उतना ही वह ऊपर उठ जायेगा ।
सद्गुरु की सेवा उत्तम है
- गुरु अमरदासजी
हे भाई ! सर्वव्यापक परमात्मा हरि गुणहीन जीवों को सद्गुरु की सेवा में लगाकर क्षमा करते हैं । सद्गुरु की सेवा उत्तम है क्योंकि उनकी सेवा करने से भगवन्नाम में चित्त लगता है ।
जाति हमारी आतमा...
- संत मलूकदासजी
जाति हमारी आतमा, नाम हमारा राम ।
पाँच तत्त्व का पूतरा, आइ किया विश्राम ।।*
मरकर के युग-युग जिया
- संत यारी साहब
सद्गुरु की चरणरज को लेकर दोनों आँखों के बीच अंजन लगाया अर्थात् गुरुदेव के ब्रह्मज्ञान के उपदेश एवं ध्यान के द्वारा तीसरा नेत्र - ज्ञान-नेत्र जागृत किया । उससे अज्ञान-अंधकार मिटकर ज्ञान का प्रकाश हुआ । उस ज्ञान-प्रकाश से निर्गुण परमात्मा का अनुभव हुआ । जिस परमात्मा में करोड़ सूरज सघनरूप से छिपे हुए हैं, उस तीनों लोकों के स्वामी को अपने प्रियतमरूप में पाकर मैं धन्य हो गया । संत यारी साहब कहते हैं कि सद्गुरु ने जो कृपा की उससे मैं मरकर अर्थात् मरणधर्मा शरीर में अहंबुद्धि नष्ट हो के युग-युग जी रहा हूँ ।
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* पंचतत्त्व के बने इस शरीर में आकर विश्राम किया है ।