ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों की शरण से होता सहज में दुःख-निवारण

आनंदमयी माँ के प्रति श्रद्धा रखनेवाले एक भक्त श्री अमूल्यकुमार दत्तगुप्त एक बार की घटना बताते हैं : ‘‘मेरे मित्र की 10-12 वर्ष की लड़की पानी में डूबकर मर गयी । दूसरे दिन शोकातुर मित्र को साथ लेकर मैं आनंदमयी माँ के पास गया । मैंने माँ को अपने मित्र का परिचय दिया और दुर्घटना की कहानी सुनायी ।

करुणाभरी दृष्टि डालते हुए माँ मित्र को समझाने लगीं : ‘‘अपने को कर्ता समझने के कारण तुमने इस दुःख को स्वीकार किया है । अगर ‘मेरा लड़का, मेरी लड़की...’ यह भावना नहीं रहती, अगर पत्नी-पुत्र आदि को भगवान का धन समझते तो कष्ट पाने का कोई कारण नहीं रहता । जिसका धन है उसे लौटा देने पर हमें दुःख नहीं होता बल्कि एक जिम्मेदारी से मुक्त हो गये ऐसा समझकर शांति पाते हैं । अगर तुम वास्तव में लड़की से स्नेह रखते हो तो रोने-गाने की जरूरत नहीं है बल्कि भगवान से प्रार्थना करो ताकि उसकी सद्गति हो जाय । जब कभी तुम अपनी लड़की के लिए रोना-गाना करोगे तब वह तुम्हारे निकट आने का प्रयत्न करेगी लेकिन वह आ नहीं सकेगी क्योंकि जिस पर्दे के कारण वह तुमसे अलग हुई है, उसे फाड़ देने की ताकत उसमें नहीं है । तुम्हारी इस प्रकार की चेष्टाएँ उसके लिए कष्टकारक होंगी । अगर तुम अपनी लड़की के लिए रोना-धोना जारी रखोगे तो उसका कष्ट बढ़ता जायेगा । इसे स्नेह नहीं कहा जा सकता । इसलिए उसके कल्याण के लिए, शांति के लिए भगवान से प्रार्थना करते रहो ।’’

माँ के वचनों से मेरे मित्र को बड़ा संतोष हुआ ।’’

जिन दुःखों, कष्टों, समस्याओं को सारी धन-दौलत, योग्यता लगा के भी दूर नहीं किया जा सकता, सारे मित्र, रिश्तेदार, हितैषी मिलकर भी जिनमें कुछ मदद नहीं कर पाते ऐसी बड़ी-से-बड़ी समस्याएँ, बड़े-से-बड़े दुःख व कष्ट भी ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों की शरण लेने से सहज में ही दूर हो जाते हैं । पूज्य बापूजी के सत्संग-सान्निध्य का जिन्होंने लाभ लिया है ऐसे लाखों-करोड़ों लोगों ने इसका प्रत्यक्ष अनुभव किया है ।

गतांक की ‘ऋषि प्रसाद प्रश्नोत्तरी’ के उत्तर
(1) श्रीगुरुदेव (2) सत्यस्वरूप ईश्वर
(3) दृढ़ता, कष्टसहिष्णुता (4) चरित्रवान
इस अंक के ‘उचित मिलान करें’ के उत्तर
(1)-(ग), (2)-(घ), (3)-(क), (4)-(ख)