संत का एक वचन मिला संयम से जीवन खिला
- पूज्य बापूजी
मेरे गुरुजी (भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज) के चरणों में एक जवान उसके दो बच्चों को माथा टिकाने ले आया, बोला : ‘‘साँईं ! ये आप ही के बच्चे हैं ।’’
बाबा ने कहा : ‘‘क्यों, कैसे हैं ? दोनों अलमस्त हैं ?’’
बोले : ‘‘स्वामीजी ! मेरी नयी-नयी शादी हुई थी, फिर आपके सत्संग में आया था । एक घड़ी, आधी घड़ी आपका सत्संग सुना । उस दिन सत्संग ब्रह्मचर्य पर था । सत्संग सुन के मैंने जाकर पत्नी को समझा दिया कि ‘‘यदि अपना बच्चा तेजस्वी, दिव्य देखना हो, अपने को बुढ़ापे में मुसीबत नहीं देखनी हो तो अभी यह अवस्था संयम की है ।’’ तो स्वामीजी ! मैं और मेरी पत्नी दोनों सहमत हो गये । लेकिन घरवाले बोलते थे कि ‘2-4 महीने हो गये, तुम पत्नी के साथ कमरे में रहते नहीं हो ।...’ घरवाले बोल-बोल करते थे । वह सब मैंने सह लिया । सुना-अनसुना कर दिया क्योंकि ईश्वर के मार्ग में, संयम के मार्ग में वे काँटे बो रहे थे तो उनकी बात की क्या कीमत ! घरवाले बहुत परेशान करते थे तो मैं कभी-कभी अपनी फैक्ट्री में ही सो जाता था, उधर ही रहता था । पत्नी तो सहमत थी ।
स्वामीजी ! हमारे गाँव में 37 बच्चे और हैं इनकी उम्र के - 5 से 10 साल के बीच के और 2 ये जुड़वाँ मुन्ने । कुल 39 बच्चे हैं । बाबाजी ! हमारे ब्रह्मचर्य-संयम और आपके सत्संग का इतना प्रभाव है कि ये दोनों जुड़वाँ भाई उन 37 बच्चों को कुश्ती में मजाक-मस्ती में पटक देते हैं ।’’
अब बताओ, आधी-एक घड़ी ब्रह्मनिष्ठ संत के संग का प्रभाव ऐसा कि 39 बच्चों में उनके बच्चे प्रथम आते थे, बाद में कहाँ पहुँचे होंगे वह तो नारायण जानें ! एक पुण्य था कि सत्संग में गये थे । मूर्ति-मंदिर में तो और लोग भी जाते थे परंतु वे सत्संग में गये थे । सत्संग का, संत का एक वचन उसके जीवन में उतर गया तो अभी उसकी कीर्ति हो रही है और उसके जीवन में कितनी सुख-शांति, कितनी पुष्टि आयी होगी !
...उसको भविष्य की चिंता हो ही नहीं सकती
- पूज्य बापूजी
आप योग्यता, ईमानदारी का आश्रय लोगे और परिश्रमी रहोगे तो संसार के काम आओगे और जो संसार के काम आता है संसार उसको चाहेगा । उसको फिर अपने शरीर के लिए चिंता नहीं करनी चाहिए । शरीर की आवश्यकता की संसार अपने-आप पूर्ति कर देगा । अरे, तुम्हारी बाइक और कार को ऑयल और पेट्रोल तुम दे देते हो तो तुम्हारा जो हितैषी है उसको तुम खाना-पीना, आवास क्यों नहीं दोगे ?
आप योग्यता, परिश्रम और ईमानदारी का आश्रय लें तो संसार बहुत-बहुत दयालु, बहुत उदार है । ‘हमारा भविष्य में क्या होगा ?’ - यह स्वार्थी लोग सोचते हैं, ‘हमारा भविष्य कैसा होगा ?’ - यह अविश्वासी, नादान और मूर्ख लोग सोचते हैं । जो अपनी योग्यता, ईमानदारी और परिश्रम समाज के हित में, ईश्वर की सेवा में लगाता है उसको भविष्य की चिंता हो ही नहीं सकती । अगर कोई चिंता करता है तो वह उसकी योग्यता का, ईमानदारी का उपयोग नहीं कर रहा है । बेईमान को ही भविष्य का भय होता है, ईमानदार को नहीं होता ।