मुक्त अवस्था को तुम पाओ

- पूज्य बापूजी

हमेशा के लिए रहना नहीं, इस दार-ए-फानी* में ।
कुछ अच्छा काम कर लो, चार दिन की जिंदगानी में ।।
तन से सेवा करो जगत की, मन से प्रभु के हो जाओ ।
शुद्ध बुद्धि से तत्त्वनिष्ठ हो, मुक्त अवस्था को तुम पाओ ।।
निःस्वार्थ सेवी हो सदा, मन मलिन होता स्वार्थ से ।
जब तक रहेगा मन मलिन, नहीं भेंट हो परमार्थ से ।।
द्वेष को, कपट को, अहंकार को त्यागकर संगठित हो के सेवा करो ।
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* नश्वर संसार

उचित मिलान करें

(1) वास्तव में बँधा कौन है ? (क) अपना शरीर ।
(2) विमुक्ति क्या है ? (ख) तृष्णा का नाश होना ।
(3) घोर नरक क्या है ? (ग) जो विषयों में आसक्त है ।
(4) स्वर्ग का पद क्या है ? (घ) विषयों से वैराग्य ।
(उत्तर इसी अंक में)

अपना उत्साह, पुरुषार्थ कभी न छोड़ना

- पूज्य बापूजी

जो निराशावादी है, खिन्नचित्त है, आलसी या प्रमादी है वह विजय के करीब पहुँचकर भी विफल हो जाता है लेकिन जो उत्साही व पुरुषार्थी होता है वह हजार बार असफल होने पर भी पग आगे रखता है और अंततः विजयी हो जाता है । आप भी परमात्मा से मिलने की आशा को कदापि न छोड़ना, अपना उत्साह, पुरुषार्थ कभी न छोड़ना ।

किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए...

- पूज्य बापूजी

संसार में और भगवान की प्राप्ति में सफल होने का सुंदर तरीका है :
(1) अपनी योग्यता के अनुरूप परिश्रम में कोर-कसर न रखें ।
(2) अंदर में त्याग-भावना हो । परिश्रम का फल, सफलता का फल भोगने की लोलुपता का त्याग हो ।
(3) स्वभाव में स्नेह और सहानुभूति हो ।
(4) लक्ष्यप्राप्ति के लिए तीव्र लगन हो ।
(5) प्रफुल्लितता हो ।
(6) निर्भयता हो ।
(7) आत्मविश्वास हो ।
तो व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में सफल हो जायेगा ।